अफगानिस्तान में अमेरिकी बेस पर हुआ ड्रैगन का कब्जा! जानें तालिबान के साथ मिलकर कौन सी चल रहा है चीन

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चीन अफगानिस्तान को लुभाने के लिए बड़ी चाल चल रहा है, जिसमें वह कामयाब भी होता दिख रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से चीन की नजर काबुल के पास बगराम एयर बेस पर है। यह वही एयर बेस है जहां से अमेरिका पूरे अफगानिस्तान में अपना हवाई अभियान चलाता था। यह एयरबेस राजधानी काबुल के पास स्थित है, जिससे इसका रणनीतिक महत्व काफी बढ़ जाता है।खबरों के अनुसार, चीन बगराम एयर बेस पर एंटी ड्रोन सिस्टम तैनात करने जा रहा है। चीन ने कई बार तालिबान सरकार से इस बेस की मांग की थी, लेकिन एंटी-ड्रोन सिस्टम लगाए जाने की खबर से इस बात की पुष्टि हो गई है कि चीन वहां पहुंच चुका है।

तालिबान को सता रहा है अमेरिका और पाकिस्तान का डर

वहीं रक्षा मामलों के विशेषज्ञ तमीम एसे ने भी इसकी पुष्टि की है। उनका कहना है कि चीन बगराम एयरबेस और अफगानिस्तान के अन्य ठिकानों पर एंटी ड्रोन सिस्टम लगाने जा रहा है। इसका खुलासा तालिबान के रक्षा मंत्रालय के एक लीक मेमो से हुआ है। तालिबान सरकार चीनी इंजीनियरों के साथ मिलकर यह सिस्टम लगाने जा रही है, क्योंकि तालिबान को डर है कि अमेरिका और पाकिस्तान ड्रोन हमले कर सकते हैं। इसलिए ऐसा किया जा रहा है। विशेषज्ञ ने कहा कि तालिबान और चीन के बीच सैन्य समझौते मजबूत हो रहे हैं। तालिबान के रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब ने दो दिन पहले इस बारे में बताया था।

क्या है ड्रैगन का प्लान?

तमीम ने कहा कि इससे पता चलता है कि तालिबान और चीन के बीच सुरक्षा और सैन्य समझौते मजबूत हो रहे हैं। चीन का यह कदम दुनिया से अलग-थलग पड़ चुके तालिबान प्रशासन के लिए वरदान जैसा है। चीन जिस तरह से कदम उठा रहा है, उससे साफ लगता है कि वह पर्दे के पीछे तालिबान प्रशासन को पहचानता है और रणनीतिक और आर्थिक लाभ हासिल करना चाहता है।

अब चीन तालिबान सरकार के साथ मिलकर पाकिस्तान में चल रहे CPECप्रोजेक्ट में तालिबान से मदद ले सकता है, क्योंकि तालिबान समर्थक आतंकी संगठन पाकिस्तान में चीनी इंजीनियरों पर हमला करता है। अब चीन इसका फायदा उठा सकता है। इससे पहले भी चीन ने तालिबान के राजदूत को मान्यता देकर दुनिया को चौंका दिया था। हालांकि, पाकिस्तान ने खुद इसका विरोध किया था। अब जिस तरह से चीन पाकिस्तान और अन्य देशों को दरकिनार कर अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्ते बढ़ा रहा है, उससे लगता है कि चीन रणनीतिक और आर्थिक लाभ लेना चाहता है। चीन का इरादा CPEC प्रोजेक्ट को काबुल तक ले जाने का है, इससे भी जोड़कर विचार किया जा रहा है।

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